EWS Judgement: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सामान्य वर्ग के आर्थिक वर्ग के कमजोरों को EWS कोटा को फिर से बरकरार रखकर लाभार्थियों को राहत दी है। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के 103वें संशोधन को सही ठहराकर इस मसले पर उठे विवादों को शांत कर दिया है। आपको बता दें EWS के खिलाफ कोर्ट में 40 याचिकाओं के जरिए चुनौती दी गई थी।
पांच जजों की संविधान पीठ ने 3-2 के बहुमत EWS को सही करार दिया। गौरतलब है इस कोटे के तहत आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को शिक्षण संस्थानों में दाखिलों और नौकरियों में 10 प्रतिशत कोटा मिलता है। जिन लोगों की सालाना पारिवारिक आय 8 लाख रुपये तक ही है, उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर माना गया है। साल 2019 में 103वें संविधान संशोधन से यह आरक्षण लागू किया गया था। जस्टिस दिनेश महेश्वरी, जस्टिस बेला त्रिवेदी, जस्टिस जे. बी पारदीवाला ने EWS के पक्ष में फैसला सुनाया जबकि चीफ जस्टिस यू. यू ललित और जस्टिस रविन्द्र भट्ट ने कोटे के खिलाफ मत दिया।
EWS कोटा पर जजों की क्या राय थी
आपको बता दें पांच जजों की पीठ में इस मसले पर एकराय नही थी। 3 जजों ने आरक्षण के पक्ष में अपना मत दिया तो वहीं चीफ जस्टिस समेत 2 जजों ने आरक्षण के खिलाफ अपना मत दिया। जस्टिस दिनेश महेश्वरी, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने कहा कि आर्थिक आधार पर आरक्षण संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ नहीं है। जस्टिस महेश्वरी ने कहा कि 103वां संविधान संशोधन वैध है और संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ नहीं है।
चीफ जस्टिस यू.यू ललित ने जस्टिस रविंद्र भट्ट के साथ अल्पमत में फैसला दिया। जस्टिस भट्ट ने बहुमत के फैसले से असहमति जताते हुए कहा कि सिर्फ सामान्य वर्ग के आर्थिक कमजोरों को आरक्षण देना और एससी, एसटी और ओबीसी के आर्थिक कमजोरों को इससे बाहर रखा जाना भेदभाव वाला कदम है। यह संविधान के तहत मिली समानता का उल्लंघन है। जस्टिस भट्ट ने कहा कि प्राइवेट संस्थान में आरक्षण किसी तरह का कानूनी उल्लंघन नहीं है। हालांकि इससे SC, ST, और OBC को अलग करना गलत है। जस्टिस भट्ट के फैसले के बाद चीफ जस्टिस ललित ने कहा कि वह जस्टिस भट्ट के फैसले के साथ है।
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